Bharatiya Nyaya Sanhita 115 in Hindi – BNS 115 in Hindi
स्वेच्छया घोर उपहति कारित करना- (1) जो कोई स्वेच्छया उपहति कारित करता है, यदि वह उपहति, जिसे कारित करने का उसका आशय है या जिसे वह जानता है कि उसके द्वारा उसका किया जाना सम्भाव्य है धौर उपहति है, और यदि वह उपहति, जो वह कारित करता है, घोर उपहति को, तो वह ‘स्वेच्छया घोर उपहति करता है’, यह कहा जाता है।
(2) जो कोई उपधारा (3) में उपबंधित मामले के सिवाय स्वेच्छया घोर उपहति कारित करता है, दोनों में से किसी भांति के कारावास से दंडनीय होगा, जिसे सात वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, और जुर्माने के लिए भी दायी होगा।
स्पष्टीकरण- कोई व्यक्ति स्वेच्छया घोर उपहति कारित करता है, यह नहीं कहा जाता है सिवाय जबकि वह घोर उपहति कारित करता है और घोर उपहति कारित करने का उसका आशय हो या धौर उपहति कारित होना वह सम्भाव्य जानता हो किन्तु यदि वह यह आशय रखते हुए या यह संभाव्य जानते हुए कि वह किसी एक किस्म की घोर उपहति कारित कर दे वास्तव में दूसरी ही किस्म की घोर उपहति कारित करता है, तो वह स्वेच्छया घोर उपहति कारित करता है, यह कहा जाता है।
दृष्टांत- क, यह आशय रखते हुए या यह सम्भाव्य जानते हुए कि वह य के चेहरे को स्थायी रूप से विद्रूपित कर दे, य के चेहरे पर प्रहार करता है जिससे य का चेहरा स्थायी रूप से विद्रूपित तो नहीं होता, किन्तु जिससे य को बीस दिन तक तीव्र शारीरिक पीड़ा कारित होती है। क ने स्वेच्छया घोर उपहति कारित की है।
(3) जो कोई उपधारा (1) के अधीन अपराध कारित करता है और ऐसे कारित करने के क्रम में किसी व्यक्ति को उपहति कारित करता है, जो उस व्यक्ति को स्थायी दिव्यांगता कारित करता है या सतत् शिथिल अवस्था में डाल देता है वह ऐसी अवधि के कठोर कारावास से दंडनीय होगा जो दस वर्ष से कम नहीं होगा किंतु आजीवन कारावास तक हो सकेगी, जिससे उस व्यक्ति के प्राकृतिक जीवन की शेष अवधि का कारावास अभिप्रेत है।
(4) जहां पांच या अधिक व्यक्तियों के समूह द्वारा किसी व्यक्ति को उसके मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान, भाषा, व्यक्तिगत विश्वास या किसी अन्य आधार पर घोर उपहति कारित की जाती है, ऐसे समूह का प्रत्येक सदस्य घोर उपहति कारित करने के अपराध का दोषी होगा और दोनों में से किसी भांति के कारावास से दंडनीय होगा, जो सात वर्ष तक बढ़ाया जा सकेगा और जुर्माने के लिए भी दायी होगा।
Bharatiya Nyaya Sanhita 115 in English – BNS 115 in English
Voluntarily causing grievous hurt- (1)Whoever voluntarily causes hurt, if the hurt which he intends to cause or knows himself to be likely to cause is grievous hurt, and if the hurt which he causes is grievous hurt, is said “voluntarily to cause grievous hurt”.
(2) Whoever, except in the case provided for by sub-section (3), voluntarily causes grievous hurt, shall be punished with imprisonment of either description for a term which may extend to seven years, and shall also be liable to fine.
Explanation- A person is not said voluntarily to cause grievous hurt except when he both causes grievous hurt and intends or knows himself to be likely to cause grievous hurt.But he is said voluntarily to cause grievous hurt, if intending or knowing himself to be likely to cause grievous hurt of one kind, he actually causes grievous hurt of another kind.
Illustration- A, intending of knowing himself to be likely permanently to disfigure Z’s face, gives Z a blow which does not permanently disfigure Z’s face, but which causes Z to suffer severe bodily pain for the space of fifteen days. A has voluntarily caused grievous hurt.
(3) Whoever commits an offence under sub-section (1) and in the course of such commission causes any hurt to a person which causes that person to be in permanent disability or in persistent vegetative state, shall be punished with rigorous imprisonment fora term which shall not be less than ten years but which may extend to imprisonment for life,which shall mean imprisonment for the remainder of that person’s natural life.
(4) When grievous hurt of a person is caused by a group of five or more persons on the ground of his, race, caste, sex, place of birth, language, personal belief or any other ground,each member of such group shall be guilty of the offence of causing grievous hurt, and shall be punished with imprisonment of either description for a term which may extend to seven years, and shall also be liable to fine.