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Domestic Violence Act 2005 Judgement

Ashutosh Chauhan by Ashutosh Chauhan
January 17, 2023
in Judgements, Domestic Violence judgement
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Domestic Violence
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What is the Domestic Violence Act 2005?

प्रार्थिया श्रीमती क्षमा रानी की ओर से विरूद्ध विपक्षीगण अंतर्गत धारा-१२ घरेलू हिंसा (Domestic Violence Act 2005) से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम के तहत संरक्षण दिलाये जाने हेतु तथा भरण-पोषण के सम्बन्ध में अनुतोष प्राप्त करने हेतु यह प्रार्थना-पत्र प्रस्तुत किया गया है।

संक्षेप में प्रार्थना-पत्र का कथानक इस प्रकार है कि प्रार्थिया की शादी विपक्षी संजीव कुमार के साथ दिनांक २२.११.२००४ को हिन्दू रीतिरिवाज के अनुसार ग्राम इन्द्रगडी, जनपद गाजियाबाद में हुई थी जिसमें प्रार्थिया के माता पिता व परिवारवालों ने अपनी हैसियत से अधिक दान दहेज व गृहस्थी का सामान देते हुए लगभग आठ लाख रूपये खर्च किये थे, उक्त दान दहेज का सामान स्त्रीधन के रूप में विपक्षीगण को अमानत के रूप में सुपुर्द किया गया था।

प्रार्थिया का पति शादी से पूर्व से नौकरी करता था जिसने अपनी कमाई से प्लाट नंबर-१०६ रकबई श्रीराम कालौनी में भवन निर्माण कराया था, जो आज भी विद्यमान है। विपक्षी संख्या-१ हिण्डन रिवर मिल डासना में डिस्पेंसर/ कमाण्डर के पद पर कार्यरत थे। वर्ष २००० में मिल बंद हो जाने के कारण वह पूर्ण रूप से बेरोजगार हो गये व सारी जिम्मेदारी विपक्षी संख्या-३ पर आ गयी व संयुक्त परिवार चलता रहा। प्रार्थिया की विपक्षी संख्या-३ के साथ दूसरी शादी थी तथा उसकी पहली पत्नी की मृत्यु हो चुकी थी।

प्रार्थिया अपने पति के साथ बहुत खुश थी लेकिन विपक्षीगण उसे खुश देखना नहीं चाहते थे तथा विपक्षी संख्या-३ की कमाई अपने पास रखना चाहते थे तथा प्रार्थिया को शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताड़ित करते थे।

प्रार्थिया के गर्भवती होने की दशा में विपक्षी संख्या-१ ने पूर्व नियोजित योजना के तहत प्रार्थिया का गर्भ नष्ट कराने के उद्देश्य से गलत दवाईयां खिला दी जिससे प्रार्थिया का जीवन खतरे में पड़ गया व गर्भ में पल रहे शिशु की भ्रूण हत्या हो गई। करीब दो साल से प्रार्थिया व उसके पति को विपक्षीगण संख्या-१ व २ ने तंग व परेशान करते हुए उत्पीड़न करना शुरू कर दिया जिससे प्रार्थिया के पति का मानसिक संतुलन बिगड़ गया और वह पिछले एक साल से बेरोजगार हो गये तथा प्रार्थिया के परिवार पर आर्थिक संकट आ गया।

विपक्षी संख्या-१ ता ३ ने अपनी पुत्री पूनम के साथ मिल कर प्रार्थिया को अपने संयुक्त मकान स्थित श्रीराम कालौनी से भगाना चाहा व कई बार प्राणघातक हमला भी किया जिससे प्रार्थिया की जान बामुश्किल बची। प्रार्थिया ऐसी मुशीबत की घड़ी में बामुश्किल १५००/-रूपये की नौकरी करके अपना इलाज करा रही है तथा अपने उक्त संयुक्त मकान में निवास कर रही है। दिनांक १८.०५.२०१४ को समय करीब १.०० बजे दिन में विपक्षी संख्या- १ ने प्रार्थिया को कमरे में बंद करके गैस खोल कर जलाने का प्रयास किया व मारपीट की।

मौहल्ले वालों के आने पर प्रार्थिया द्वारा सौ नंबर पर फोन करने पर प्रार्थिया की जान बची। उसके बाद विपक्षीगण १ ता २ प्रार्थिया को और अधिक प्रताड़ित करने लगे व मकान ने निकाल कर भगाने का प्रयास करने लगे व मकान बेचने की धमकी देने लगे।

domestic violence act 2005

Domestic Violence Act

विपक्षीगण प्रार्थिया को उक्त मकान से भगा सकते हैं तथा उसके पति की हत्या कर सकते हैं। प्रार्थना की गई कि विपक्षीगण द्वारा प्रार्थिया को शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताड़ित करने से रोका जाये तथा प्रार्थिया को संयुक्त मकान में अविभाज्य सम्पत्ति से जबरदस्ती निकाले जाने से रोके जाने हेतु आदेश पारित किया जाये तथा प्रार्थिया का स्त्रीधन दिलाया जाये।

प्रार्थिया द्वारा आवेदन प्रस्तुत करने के उपरान्त विपक्षीगण को नोटिस प्रेषित किये गये विपक्षी संख्या-१ व २ द्वारा न्यायालय में उपस्थित होकर प्रार्थना-पत्र के विरूद्ध आपत्ति प्रस्तुत की गयी जिसमें विवाह के तथ्य को स्वीकार करते हुए शेष तथ्यों से इंकार किया गया तथा कथन किया कि शादी सादा तरीके से बिना दन दहेज के सम्पन्न हुई थी , कोई दान दहेज नहीं लिया था, और न ही कथित दहेज विपक्षीगण के पास है।

विपक्षी संख्या-३ पूर्व पत्नी के विवाह के उपरान्त से ही विपक्षीगण से अलग रहता है और आज भी अलग रह रहा है। विपक्षीगण द्वारा प्रार्थिया को किसी भी प्रकार से प्रताडित नहीं किया गया। दोंनो बच्चो की मृत्यु प्रसव उपरान्त अस्पताल में गर्भ के दौरान शारीरिक कमियों के कारण हुई थी।

विपक्षी संख्या-३ कभी भी मानसिक रूप से अस्वस्थ नहीं रहा है। प्रार्थिया व उसका पति कभी भी संयुक्त परिवार का हिस्सा नहीं रहे हैं। प्रार्थिया द्वारा विपक्षीगण पर गलत आरोप लगाये गये हैं। प्रार्थिया अन्यत्र विपक्षी संख्या-३ के रूप में रह रही है तथा बार बार विपक्षीगण के मकान में घुसने का प्रयास करती है। मकान नंबर १०६ विपक्षीगण की स्व अर्जित सम्पत्ति है जिसमें विपक्षी संख्या-३ का कोई योगदान नहीं है। विपक्षी संख्या-१ वर्ष २०१० में प्रार्थिया तथा उसके पति को अपनी सम्पत्ति से बेदखल कर चुका है। विपक्षीगण के विरूद्ध कोई घरेलू हिंसा का मामला नहीं बनता है। अतः प्रार्थना पत्र प्रगतिशील न होने के कारण निरस्त किया जाये।

प्रार्थिया द्वारा प्रार्थना-पत्र के समर्थन में मौखिक साक्ष्य में स्वयं को परीक्षित कराया है। प्रार्थिया द्वारा दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में सूची दिनांकित २०.०८.२०१६ से सत्यापित प्रतिलिपि वाद संख्या-९७७/२०१४ राजेन्द्र कुमार बनाम संजीव कुमार वाद-पत्र, सत्यापित प्रतिलिपि आदेश दिनांकित १८.०४.२०१६ बाबत निस्तारण प्रार्थना-पत्र ६ग वाद संख्या-९७७/२०१५, सत्यापित प्रतिलिपि वाद-पत्र वाद संख्या-९७६/२०१४ , सत्यापित प्रतिलिपि आदेश दिनांकित १८.०४.२०१६ बाबत निस्तारण ६ग, वाद संख्या-९७६/२०१५ दाखिल किये गये हैं। विपक्षी की ओर से सफाई साक्ष्य में डी.डब्लू.-१ राजेन्द्र कुमार का बयान कराया गया है।

उभय पक्ष द्वारा अपने अभिकथमनों के समर्थन में विभिन्न प्रपत्रों की छाया प्रतियां भी प्रस्तुत की गई हैं, परन्तु चूँकि छाया प्रतियां साक्ष्य में गाह्य नहीं हैं एसी दशा में छाया प्रतियों पर विचार नहीं किया जा रहा है।

Domestic Violence Act 2005

मेरे द्वारा विगत तिथि पर उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्ता के तर्क सुने गये तथा पत्रावली का सम्यक अवलोकन किया।

प्रार्थिया द्वारा प्रार्थना-पत्र अंतर्गत धारा-१२ डी.वी. एक्ट के माध्यम से तीन अनुतोषों की याचना की गई है। प्रथम विपक्षीगण को शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना करने से रोका जाये, द्वितीय- प्रार्थिया को संयुक्त मकान से जबरदस्ती निकाले जाने से विपक्षणण को रोका जाये व तृतीय प्रार्थिया का स्त्रीधन वापस दिलाया जाये।

प्रस्तुत प्रकरण में विपक्षी संख्या-१ व २ प्रार्थिया के सास व ससुर हैं तथा विपक्षी संख्या-३ प्रार्थिया का पति है। प्रस्तुत प्रकरण में स्वीकृत रूप से प्रार्थिया विपक्षी संख्या-३ की पत्नी है। प्रार्थिया के द्वारा प्रथम अनुतोष संयुक्त गृहस्थी के मकान में निवास का चाहा गया है। जहां एक ओर प्रार्थिया द्वारा भवन को सयुक्त गृहस्थी का भवन होना बताया गया है वहीं दूसरी ओर विपक्षीगण द्वारा उक्त भवन को विपक्षी संख्या-१ की व्यक्तगत उपार्जित सम्पत्ति होना बताया गया है। प्रश्नगत भवन के सम्बन्ध में परिवादिया द्वारा अपनी जिरह में कथन किया गया है…

पूरा जजमेंट पढ़ने के लिए निचे PDF को पढ़े।

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