IPC 494 in Hindi- धारा 494 उन स्थितियों में उपयोग की जाती है जब किसी व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के साथ अनधिकृत रूप से शादी करता है। इस लेख में, हम इस धारा के बारे में सरल जानकारी प्रदान करेंगे। और साथ में ये भी बातएंगे की ये धारा कब लगती है?, ऐसे मामलो में कितनी सजा (Punishment) और जमानत (Bail) कैसे मिलती है? तो दोस्तों इस आर्टिकल में अंत तक बने रहे।
IPC (भारतीय दंड संहिता) की धारा 494 के अनुसार:-
पति या पत्नी के जीवनकाल में पुनः विवाह करना:- “जो कोई पति या पत्नी के जीवित होते हुए किसी ऐसी दशा में विवाह करेगा जिसमें ऐसा विवाह इस कारण शून्य है कि वह ऐसी पति या पत्नी के जीवनकाल में होता है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
अपवाद:- इस धारा का विस्तार किसी ऐसे व्यक्ति पर नहीं है, जिसका ऐसे पति या पत्नी के साथ विवाह सक्षम अधिकारिता के न्यायालय द्वारा शून्य घोषित कर दिया गया हो,
और न किसी ऐसे व्यक्ति पर है, जो पूर्व पति या पत्नी के जीवनकाल में विवाह कर लेता है, यदि ऐसा पति या पत्नी उस पश्चातवर्ती पश्चात्वर्ती विवाह के समय ऐसे व्यक्ति से सात वर्ष तक निरंतर अनुपस्थित रहा हो, और उस काल के भीतर ऐसे व्यक्ति ने यह नहीं सुना हो कि वह जीवित है, परन्तु यह तब जबकि ऐसा पश्चात्वर्ती विवाह करने वाला व्यक्ति उस विवाह के होने से पूर्व उस व्यक्ति को, जिसके साथ ऐसा विवाह होता है, तथ्यों की वास्तविक स्थिति की जानकारी, जहां तक कि उनका ज्ञान उसको हो, दे दे।”
ऊपर जो डेफिनेशन दी गयी है, वो कानूनी भाषा में दी गयी है, शायद इसको समझने में परेशानी आ रही होगी। इसलिए इसको मैं थोड़ा सिंपल भाषा का प्रयोग करके समझाने की कोशिश करता हूँ।
IPC 494 in Hindi–
भारतीय दण्ड संहिता में धारा 494 उन मामलों को संज्ञान में लाती है जब कोई व्यक्ति बिना अपनी पहली शादी को खत्म करे दूसरी शादी करता है। इसका उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को भारतीय कानून में सजा का प्राबधान है। यहां हम इस धारा के बारे में सरल भाषा में जानकारी प्रदान कर रहे हैं।
यदि कोई व्यक्ति अपनी पहली शादी को समाप्त नहीं करते हुए दूसरी शादी करता है, तो उसे कानून की नज़र में अपराधी माना जाता है। इस धारा के तहत ऐसी शादी अवैध और अमान्य मानी जाती है। अब बात करते है की ये धारा कब कब लागू होती है?
यह धारा कब लगायी जाती है?
धारा 494 निम्नलिखित स्थितियों में लागू होती है:
- यदि कोई व्यक्ति बिना पहली शादी को समाप्त किए दूसरी शादी करता है, तो यह धारा लागू होती है।
- यह धारा तभी लागू हो सकती है, जब पहली शादी कानूनी तौर पर वैध हो और पति या पत्नी में से किसी ने दूसरा विवहा कर लिया हो।
- यह धारा तब भी लागु हो सकती है, यदि पति या पत्नी में से किसी ने भी डाइवोर्स का केस चलते हुए दूसरी शादी कर ली हो।
- यह धारा तब भी लागु हो सकती है, जब पति या पत्नी में से किसी ने भी धोखे से दूसरा विवहा कर लिया हो।
हमने जो उप्पर कुछ कारण बताये है, यदि उनमे से कोई कारण है तो ये धारा लागु हो सकती है। दोस्तों आशा करता हूँ की आपको यह धारा कब लगती है समझ में आ गयी होगी। अब हम इसको एक उदहारण देकर समझाते है।
उदाहरण-
उदाहरण के रूप में, सोहन और रीना की शादी होती है। सोहन और रीना के आपसी विचार न मिलने के कारण उनके बीच हमेशा अनबन रहती है जिसके कारण रीना अधिकांश अपने मायके में रहती है। तब सोहन चुपके से किसी दूसरी महिला से शादी कर लेता है और ये बात रीना को बाद में पता चलती है। तब रीना, सोहन के खिलाफ कंप्लेंट दर्ज कराती है और सोहन पर इस धारा के तहत करवाई की जाती है।
इस मामले में, सोहन इस धारा के तहत दण्डनीय अपराध का शिकार हो सकता है और उस पर कानून द्वारा सजा का आदेश किया जा सकता है।
यह धारा कब लागू नहीं होती?
यह धारा निम्नलिखित स्थितियों में लागू नहीं होती है:
- यदि पहली शादी वैध रूप से समाप्त हो चुकी हो, तो यह धारा लागू नहीं होती है।
- यदि पति या पत्नी की मृत्यु हो चुकी हो, तो यह धारा लागू नहीं होती है।
- यदि वैध तलाक हो चुका हो, तो यह धारा उपयोगी नहीं होती है।
- मुस्लिम धर्म के लोगों पर इस धारा का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
- अगर पति या पत्नी में से कोई भी 7 वर्ष से ज्यादा समय तक लापता है तो वह इंसान दूसरी शादी कर सकता/सकती है।
- यदि दूसरी शादी को समाप्त करने की सहमति स्वतः से दी जाती है, तो यह धारा लागू नहीं होती है।
- यदि दूसरी शादी के लिए पहले से वैध सम्मति हासिल की गई हो, तो यह धारा लागू नहीं होती है।
- यदि दूसरी शादी के दौरान दोनों पक्षों की सहमति से हस्तांतरण किया जाता है, तो यह धारा लागू नहीं होती है।
- यदि दूसरी शादी के लिए पहले से कानूनी इजाज़त प्राप्त की गई हो, तो यह धारा लागू नहीं होती है।
इसकी शिकायत कैसे दर्ज करवाए?
इस धारा की शिकायत दर्ज करवाने के लिए निम्नलिखित सरल निर्देशों का पालन किया जा सकता है:
- थाने जाएं: इस धारा के उल्लंघन की शिकायत करने के लिए सबसे पहले शिकायत थाने में दर्ज करवानी होगी। आप अपने नजदीकी पुलिस स्टेशन में जा सकते हैं और वहां अपनी शिकायत दर्ज करवा सकते हैं।
- आवेदन पत्र लिखें: थाने जाने के बाद, आपको अपनी शिकायत के बारे में विस्तार से बताने वाले एक आवेदन पत्र लिखना होगा। इसमें आपको अपनी शिकायत की पूरी जानकारी और साक्ष्य प्रस्तुत करनी होगी।
- साक्ष्य जुटाएं: आपकी शिकायत को प्रमाणित करने के लिए आपको उपलब्ध साक्ष्य जुटाने होंगे, जैसे कि शादी पंजीकरण प्रमाण पत्र, शादी की पहली पत्नी या पति से संबंधित कागजात आदि।
लागू अपराध-
यह धारा उन पति या पत्नी पर लागु होती है, जो अपनी पहली शादी को समाप्त नहीं करके दूसरी शादी करते हैं। अगर कोई पति या पत्नी इसमें दोषी पाए जाते है तो उसे 7 वर्ष तक का कारावास हो सकता है और साथ में पति या पत्नी के ऊपर आर्थिक दंड भी लगाया जा सकता है। यह धारा गैर-संज्ञेय (Non Cognizable) अपराध की श्रेणी में आती है। यह प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट के द्वारा विचाराधीन होती है।
अपराध | सजा | संज्ञेय | जमानत | विचारणीय |
---|---|---|---|---|
पति या पत्नी के जीवनकाल में धोखे से पुनः विवाह करना। | 7 वर्ष तक की जेल व जुर्माना। | धारा 494 गैर-संज्ञेय (Non Cognizable) अपराध की श्रेणी में आती है। | यह जमानती अपराध है | यह प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट के द्वारा विचाराधीन होती है। |
धारा 494 में जमानत का क्या प्रावधान है?
धारा 494 एक जमानती (bailable) धारा है, इसलिए इसमें जमानत आसानी से ली जा सकती है। जमानत लेने के लिए आपको एक वकील की जरुरत होगी, जो आपके लिए कानूनी सलाह अथवा कानूनी प्रक्रिया को पूरा करेगा। लेकिन इस धारा में समझौता नही किया जा सकता है।
FAQ-
प्रश्न:- धारा 494 के तहत दोषी को क्या सजा हो सकती है?
उत्तर:- धारा 494 के अनुसार, दोषी को 7 वर्ष तक की सजा और साथ में फाइन का प्रावधान किया गया है।
प्रश्न:- धारा 494 के तहत शिकायत कैसे दर्ज कराई जा सकती है?
उत्तर:- धारा 494 के अनुसार शिकायत थाने या कोर्ट में दर्ज कराई जा सकती है। इसके लिए शिकायतकर्ता को थाने या कोर्ट जाकर आवेदन पत्र देना होता है और उसके बाद पुलिस की जाँच शुरू होती है।
प्रश्न:- धारा 494 के तहत सजा की धारा किस प्रकार निर्धारित होती है?
उत्तर:- धारा 494 के तहत सजा की धारा उल्लंघन की गंभीरता और स्थिति के आधार पर निर्धारित होती है और इसमें दोषी की परिवारिक स्थिति और आर्थिक परिस्थितियाँ भी माध्यम बनती हैं।