वादी मुकदमा द्वारा प्रस्तुत प्रार्थना-पत्र अंतर्गत धारा- 156(3) दं०प्र०सं० दिनांकित 18-06-2008 पर न्यायालय द्वारा पारित आदेश दिनांकित 24-06-2008 के अनुक्रम में विरूद्ध अभियुक्तणण 4- गोपाल , 2- विक्कीराम, 3- सत्यपाल, 4- बबली, 5- श्रीमती सरोज » 6- श्रीमती सुरेश, 7- सतेन्दर व 8- चमन लाल थाना मसूरी में मुगअ०सं० 374/2008 अंतर्गत धारा- 498a, 323, 504, 506 भा०दं०सं० व धारा 3/4 दहेज प्रतिषेध अधिनियम अभियोग पंजीकृत कर विवेचना की गयी जिसमें प्रस्तुत आरोप-पत्र दिनाँंकित 19-07-2008 पर संज्ञान लिया जाकर मामले में विचारण इस न्यायालय द्वारा किया गया।
संक्षेप में अभियोजन कथानक इस प्रकार है कि प्रार्थिया मीनू पत्नी गोपाल का विवाह विपक्षी संख्या-1 के साथ दिनांक 11-05-2005 को ग्राम चित्तौड़ा थाना मसूरी जिला गाजियाबाद में हुआ था जिसमें उसके पिता ने लगभग चार लाख रूपये खर्च किया था तथा काफी दहेज दिया था लेकिन विपक्षीगण दिये गये दान दहेज से सन्तुष्ट नहीं थे। उनके द्वारा अतिरिक्त दहेज में दो लाख रूपये व एक कार की मांग को लेकर प्रार्थिनी का उत्पीडन किया गया। ससुराल वालों ने गन्दी-गन्दी गालियां दी तथा एक बार भोजन दिया जाता था। विपक्षीगण ने शराब पीकर थप्पड़, लात-घूसों तथा बैल्ट से मारपीट की व जान से मारने की धमकी दी। दिनांक 20-01- 2008 को प्रार्थिनी के पिता व भाई तथा समाज के व्यक्ति आये और विपक्षीगण को समझाया बुझाया जिस पर विपक्षीगण ने बचन दिया कि वह आगे दहेज नहीं मागेंगे और न ही दहेज उत्पीड़न करेंगे। उक्त मांफीनामा को संलग्न किया गया है। शादी के उपरान्त जब प्रार्थिनी को लड़की पैदा हुयी तो विपक्षीगण ने अधिक उत्पीड़न करना शुरू कर दिया तथा दिनांक 12-05-2008 को गोपाल व सतपाल प्रार्थिनी व उसकी पुत्री को ग्राम चित्तोड़ा के बाहर मारपीट कर घायल अवस्था में छोड़ कर चले गये और कहा कि “‘ तेरे मा बाप सरकारी नौकरी करते हैं उनके लिए दो लाख रूपये व कार देना कोई बड़ी बात नहीं है, जब तक तू दो लाख रूपये व कार नहीं लायेगी तब तक तू अपने बाप के घर पर ही रहेगी”। उसके पिता ने प्रार्थिनी का मैडिकल चैकअप एम.एम.जी. अस्पताल गाजियाबाद में कराया गया जिसकी रिपोर्ट संलग्न की जा रही है।
अभियुक्तगण को विचारण हेतु आहुत किया गया। अभियुक्तगण को धारा 207 दण्ड प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत अभियोजन प्रपत्रो की प्रतियां प्रदान की गयी। अभियुक्तमण गोपाल , विक्कीराम, सत्यपाल, बबली, श्रीमती सरोज , श्रीमती सुरेश, सतेन्दर व चमन लाल के विरूद्ध आरोप अन्तर्गत धारा 498a, 323, 504 भा०द०सं० व धारा 3/4 दहेज प्रतिषेध अधि० में विरचित किया गया। अभियुक्तगण ने आरोप से इंकार किया व परीक्षण चाहा।
अभियोजन पक्ष की ओर से अपने मामले को सिद्ध किये जाने हेतु मौखिक साक्ष्य के रूप में पी०डब्लू-1- श्रीमती मीनू , पी०डब्लू-2 श्रीमती शकुन्तला, पी.डब्लू-3 संजय कुमार, पी.डब्लू-4 का०/ क्लर्क 707 राजपाल सिंह, पी.डब्लू-5 डा० राजेन्द्र वार्ष्णय एवं पी.डब्लू.-6 उपनिरीक्षक आर. के. उपाध्याय को परीक्षित कराया गया है। साक्षीगण पी.डब्लू-। , पी.डब्लू.-2 व पी.डब्लू.-3 तथ्य के साथी हैं तथा साक्षीगण पी.डब्लू.-4 लगायत पी.डब्लू.-6 औपचारिक साक्षी हैं। अभियोजन साक्षीगण के बयानों के आधार पर फैसला नामा प्रदर्श क-, प्रार्थना-पत्र धारा- 156(3) दं०प्र०सं० प्रदर्श क-2, नकल चिक प्रथम सूचना रिपोर्ट प्रदर्श क-3, चिकित्सीय आख्थया प्रदर्श क-4, नक्शा नजरी प्रदर्श क-5 एवं आरोप पत्र प्रदर्श क-6 साबित किये गये हैं।
अभियोजन साक्ष्य पूर्ण होने के उपरान्त अभियुक्तगण के बयान अंतर्गत धारा 313 दण्ड प्रक्रिया संहिता अंकित किये गये। जिसमें अभियुक्तमण ने अभियोजन कथानक को गलत बताया व सफाई साक्ष्य देने का कथन किया।
सफाई साक्ष्य में किसी साक्षी को प्रस्तुत नहीं किया गया है। इसके स्थान पर दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में वि० वाद संख्या-977/2011 श्रीमती मीनू बनाम गोपाल में उभय पक्ष द्वारा प्रस्तुत समझौता नामा की सत्यापित प्रतिलिपि, वि०वाद संख्या-977/2011 अंतर्गत धारा-125 दं०प्र०सं० में पी.डब्लू- के रूप मे दर्ज किये गये श्रीमती मीनू पत्नी गोपाल धीगान के बयानों की सत्यप्रतिलिपि तथा विविध वाद संख्या-977/2047 में न्यायालय द्वारा पारित निर्णय दिनांकित 08-06-2012 की सत्याप्रति दाखिल की गयी है।
दौरान बहस विद्वान अभियोजन अधिकारी द्वारा कथन किया गया है कि अभियोजन पक्ष के द्वारा मामला बखूबी साबित किया गया है तथा सभी गवाहान के बयान विश्वसनीय हैं, इस कारण अभियुक्तगण उनके विरूद्ध लगाये गये आरोप के लिए दोष सिद्ध किये जाने योग्य हैं।
बचाव पक्ष के विद्वान अधिवक्ता द्वारा दिये गये तर्क निम्नवत हैं-
- अभियोजन द्वारा प्रस्तुत साक्षीगण के बयानों में गम्भीर विरोधाभास है, जिसके कारण उक्त बयान विश्वास योग्य नहीं हैं।
- साक्षी पी.डब्लू-5 तथा चिकित्सीय आख्या प्रदर्श क- 4 के मुताबिक पीड़िता मोनू की चोटो का डाक्टरी परीक्षण दिनांक 12-05-2008 को किया गया तथा सभी अभियोजन साक्षीगण द्वारा मारपीट की दिनांक 12-05-2008 बतायी गयी है जबकि चिकित्सक की राय के मुताबिक उक्त चोटें कम से कम एक या दो दिन पुरानी हैं तथा जिन चोटों का परीक्षण किया गया है वह दिनांक 12-05-2008 की घटना में आना सम्भव नहीं है अपितु वह पहले की किसी घटना से सम्बन्धित हो सकती हैं।
- जिस समझौता नामा का हवाला अभियोजन पक्ष द्वारा दिया जा रहा है वास्तव में वह कभी नहीं लिखा गया था। स्वयं साक्षी पी.डब्लू -। ने अपनी जिरह में कहा है कि उसके पति गोपाल ने कुछ कोरे कागजों पर अपने हस्ताक्षर करके दिये थे। अतः इस बात की प्रवल सम्भावना है कि मुकदमा कायम कराये जाने की नीयत से अभियुक्त गोपाल के द्वारा उन कागजातों का प्रयोग किया गया हो।
- उभय पक्ष के मध्य धारा- 125 दं०प्र०सं० का मुकदमा परिवार न्यायालय द्वारा दिनांक 08-06-2012 को सुलह समझौते के आधार पर निर्णीत किया गया है। उक्त मुकदमें में पीड़िता मीनू द्वारा जो शपथ-पत्र दिया गया है उसके मुताबिक उससे कोई दहेज की मांग नहीं की गयी व न ही प्रताड़ित किया गया। उक्त मुकदमा गलत फहमी के कारण लिखा दिया गया है।
- वर्तमान मामले में दहेज की मांग को लेकर पीड़िता का उत्पीड़न किये जाने की बात कही जा रही है परन्तु न तो दहेज की मांग किस तारीख को की गयी उसका कोई उल्लेख प्रथम सूचना रिपोर्ट में किया गया है और न ही ऐसी कोई तारीख बतायी गयी है जब दहेज की मांग को लेकर पीड़िता के साथ मारपीट की गयी हो।
- उपरोक्त तर्क के आधार पर स्पष्ट है कि अभियोजन पक्ष अपना मामला सिद्ध करने में असफल रहा है तथा अभियोजन का मामला पूर्ण रूपेण संदेहास्पद है। विधि का यह सिद्धान्त है कि संदेह का लाभ सदैव अभियुक्त को मिलना चाहिए। इस प्रकार अभियुक्तगण संदेह का लाभ प्राप्त करते हुए दोषमुक्त किये जाने के हकदार हैं।