परिवादिनी श्रीमति प्रीति शोधा द्वारा प्रस्तुत परिवाद पर अभियुक्तमण अशोक कुमार , श्रीमती विमला व नरेन्द्र कुमार का विचारण धारा- 406 भा0 दं0 सं० के आरोप में किया गया।
संक्षेप में प्रकरण के तथ्य इस प्रकार है कि परिवादिया श्रीमती प्रीति शोधा द्वारा एक परिवाद इस आशय का प्रस्तुत किया गया कि उसकी शादी दिनांक 14-12-2000 को योगेन्द्र सिंह के साथ हिन्दू रीति रिवाज के अनुसार हुयी थी जिसमें परिवादिया के मायके वालों ने अपनी हैसियत के अनुसार काफी दान दहेज/स्त्रीधन दिया था जिसकी सूची परिवाद-पत्र के साथ संलग्न की गयी है। शादी के बाद दाम्पत्य सम्बन्धों से दिनांक 07-12-2004 को एक पुत्र प्रत्यक्ष सिंह का जन्म हुआ। विपक्षीगण ने घर में क्लेश करके परिवादिया के पति को मानसिक व शारीरिक उत्पीड़न पहुँचाया जिसके कारण परिवादिया के पति योगेन्द्र कुमार की दिनांक 12-06-2008 को मृत्यु हो गयी। परिवादिया के पति की मृत्यु होने के उपरान्त परिवादिया के उक्त ससुराल वालों ने परिवदिनी के साथ मारपीट करके परिवादिनी के साथ मारपीट कर उसका समस्त स्त्रीधन जेवरात आदि अपने कब्जे में रख कर केवल पहने हुए कपड़ों में घर से निकाल दिया तथा परिवादिया के बच्चे को अपने पास रख लिया और उसकी कृषि सम्पत्ति व निवास सम्पत्ति पर भी गैर कानूनी रूप से कब्जा करके इस्तेमाल कर रहे हैं। बारबार मांग करने पर भी विपक्षीगण ने न तो उसका स्त्रीधन वापस किया है और न ही उसे अपने पुत्र से मिलने देते हैं। परिवादिया के पति की मृत्यु के उपरान्त परिवादिया व उसके पुत्र के नाम जो जमीन बतौर वारिसान दर्ज हुई है उस पर भी विपक्षीगण कब्जा बनाये हुए हैं। परिवादिया ने अपने उक्त स्त्रीधन को वापस करने हेतु अपने अधिवक्ता के माध्यम से विपक्षीगण को कानूनी नोटिस भिजवाया परन्तु विपक्षीगण उसका स्त्रीधन वापस नहीं कर रहे हैं तथा उसे खुर्दबुर्द करने की फिराक में हैं। परिवादिया इस सम्बन्ध में थाना सिहानीगेट में रिपोर्ट लिखाने गयी तथा वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को प्रार्थना-पत्र दिया लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई। प्रार्थना की गयी कि अभियुक्तमण को तलब करके परिवादिया का समस्त स्त्रीधन वापस दिलाया जाय।
परिवादिनी तथा उसकी तरफ से प्रस्तुत मौखिक व प्रलेखीय साक्ष्य के आधार पर विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट,(सी.बी.आई.), गाजियाबाद द्वारा दिनांक 05-07-2010 को अभियुक्तगण अशोक कुमार, श्रीमती विमला व नरेन्द्र कुमार को धारा-406 भा0 दं0 सं0 के तहत तलब किए जाने हेतु आदेश पारित किया गया।
अभियुक्तगण अशोक कुमार, श्रीमती विमला व नरेन्द्र कुमार न्यायालय मे हाजिर आये और उन्होने अपनी जमानतें करायी। परिवादिनी की ओर से धारा 244 दं0 प्र 0सं0 के तहत पी0 डब्लू0- स्वयं प्रीति शोधा को परीक्षित कराया गया है।
परिवादिनी की ओर से प्रस्तुत साक्ष्य के आधार पर अभियुक्तमण अशोक कुमार, श्रीमती विमला व नरेन्द्र कुमार के विरूद्ध धारा-406 भा0दं0सं० का आरोप विरचित किया गया। अभियुक्तगण ने आरोपो से इंकार किया और परीक्षण की याचना की।
प्रस्तुत प्रकरण में दिनांक 06-03-2013 को आरोप विरचित होने के उपरान्त परिवादिया द्वारा स्वयं को साक्ष्य अंतर्गत धारा- 246 दं०प्र०सं० के तहत जिरह हेतु प्रस्तुत किया गया।
परिवादी पक्ष का साक्ष्य पूर्ण होने के उपरान्त अभियुक्तगण के बयान अंतर्गत धारा- 313 दं०प्र०सं० लेखबद्ध किये गये, जिसमें उन्होंने परिवाद कथानक को गलत होने तथा साक्षी द्वारा झूंठा बयान दिये जाने का कथन किया तथा सफाई साक्ष्य न देने का कथन किया गया।
मैने परिवादिनी व अभियुक्तमण की ओर से उपस्थित उनके विद्वान अधिवक्ता की बहस सुनी तथा पत्रावली का सम्यक् परिशीलन किया।
परिवादी पक्ष की ओर से उसके विद्वान अधिवक्ता द्वारा लिखित तर्क दाखिल किये गये हैं तथा मौखिक रूप से निम्न तर्क प्रस्तुत किये गये हैं कि परिवादिया की शादी योगेन्द्र सिंह के साथ वर्ष 2000 में हुई थी। योगेन्द्र सिंह की मृत्यु के बाद विपक्षीणगण ने उसे मारपीट कर घर से बाहर निकाल दिया तथा उसका स्त्रीधन भी विपक्षीगण के पास ही है। इसके अलावा विपक्षी परिवादिया के अवयस्क पुत्र को अपने कब्जे में रखे हुए हैं तथा उसे मिलने नहीं देते हैं। परिवादिया के द्वारा दाखिल बहस में भी कथन किया गया है कि परिवादिया के द्वारा अपने अवयस्क पुत्र की संरक्षकता के सम्बन्ध में आवेदन किया गया है और वह अभी भी लम्बित है। इसके अलावा परिवादिया के पति ने कभी कोई लीज डीड विपक्षीगण के हक में नहीं की और न ही कोई लीज डीड प्रमाणित की गयी है। परिवादिया ने अपने साक्ष्य के द्वारा यह साबित किया है कि उसका स्त्रीधन व जेवरात विपक्षीगण के पास हैं व मांगने पर बच्चा भी नहीं दिया है। ऐसी दशा में अभियुक्तणण धारा-406 भा०दं०सं० में दोष सिद्ध किया जाकर दण्डित किये जाने योग्य हैं।
बचाव पक्ष की ओर से विद्वान अधिवक्ता द्वारा लिखित तर्क दाखिल किये गये हैं तथा मौखिक बहस करते हुए कथन किया गया है कि परिवादिया के द्वारा पांच लोगों के विरूद्ध परिवाद प्रस्तुत किया गया था जिसमें से केवल तीन लोगों को ही तलब किया गया है।
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