IPC Section 68 in Hindi
आज मैं आपके लिए IPC Section 68 in Hindi की जानकारी लेकर आया हूँ, पिछली पोस्ट में हमने आपको आईपीसी (IPC) की काफी सारी धाराओं के बारे में बताया है। अगर आप उनको पढ़ना चाहते हो, तो आप पिछले पोस्ट पढ़ सकते है। अगर आपने वो पोस्ट पढ़ ली है तो, आशा करता हूँ की आपको वो सभी धाराएं समझ में आई होंगी । अब बात करते है, भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 68 क्या होती है?
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 68 क्या होती है?
IPC (भारतीय दंड संहिता की धारा ) की धारा 68 के अनुसार:-आर्थिक दण्ड के भुगतान पर कारावास का समाप्त हो जाना :- “आर्थिक दण्ड के भुगतान में चूक होने की दशा के लिए अधिरोपित कारावास तब समाप्त हो जाएगा, जब वह आर्थिक दण्ड या तो चुका दिया जाए या विधि की प्रक्रिया द्वारा वसूल कर लिया जाए।”
As per section 68 of IPC (Indian Penal Code) :-Imprisonment to terminate on payment of fine :- “The imprisonment which is imposed in default of payment of a fine shall terminate when ever that fine is either paid or levied by process of law.”
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आईपीसी धारा 68 क्या है?
ऊपर जो IPC Section 68 की डेफिनेशन दी गयी है, वो कानूनी भाषा में दी गयी है, शायद इसको समझने में परेशानी आ रही होगी। इसलिए इसको मैं थोड़ा सिंपल भाषा का प्रयोग करके समझाने की कोशिश करता हूँ। IPC Section 68 को सरल शब्दों में समझाता हूँ।
IPC Section 68 में यह बताया गया है, कि वह imprisonment (जेल की सज़ा), जिसमें किसी को फाइन (जुर्माना) हुआ है, लेकिन उसने फाइन (जुर्माना) जमा नहीं करवाया है। और वह इंसान सज़ा भुगत रहा है, उस दौरान वो अपना फाइन (जुर्माना) जमा करवा देता है, या कोर्ट दुवारा वो फाइन (जुर्माना) वसूल लिया गया (किसी भी तरीके से चाहे उसकी प्रॉपर्टी जब्त कर ली जाए)। अगर उसका फाइन (जुर्माना) वसूल लिया जाएगा या उसने फाइन (जुर्माना) खुद जमा करवा दिया है। तो जितनी भी जेल की सज़ा वह भुगत रहा होगा। वो सज़ा उसी टाइम खत्म हो जाएगी। इसको उदहारण देकर समझाता हूँ।
मान के चलिए, किसी इंसान ने कोई अपराध किया। उस अपराध के लिए उसको तीन साल तक की सज़ा हो गई और साथ में दस हज़ार का फाइन (जुर्माना) भी हुआ। अब उसको तीन साल की सज़ा तो भुगतनी ही भुगतनी है। यह सज़ा फाइन (जुर्माना) के लिए नहीं है, यह उसको अपराध के लिए सज़ा मिली है। लेकिन उस इंसान ने दस हज़ार रुपए जुर्माना जमा नहीं करवाया है। तब ऐसे में तीन साल की सज़ा तो उसको भुगतनी ही पड़ेगी। जब तीन साल की सज़ा खत्म हो जाएगी। उसके बाद दस हज़ार रुपए फाइन (जुर्माना) जो उसने जमा नहीं करवाया है, उसके लिए उसको अलग से कोर्ट सजा देगी। मान के चलिए उसको तीन महीने की अलग से सज़ा हो गई। यह तीन महीने की सज़ा उसको दस हज़ार जुर्माना ना जमा करने के लिए मिली। अब तीन साल की सज़ा खत्म होने के बाद, उसकी तीन महीने की सज़ा दुबारा से स्टार्ट होगी। क्योंकि उसने दस हज़ार रुपए फाइन (जुर्माना) जमा नहीं करवाया है।
अब उस इंसान ने अपने अपराध की तीन साल की सज़ा कम्पलीट कर ली और जुर्माने वाली सज़ा भुगत रहा है। तभी उसने कोर्ट में वो जुर्माना जमा कर दिया या कोर्ट ने उसकी प्रॉपर्टी से वसूल लिया। फिर उसकी सज़ा उसी टाइम खत्म हो जाएगी। यही बताता है, IPC का Section 68।
उम्मीद करता हूं। आपको भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) के Section 68 समझ में आ गयी होगी। मैंने इसको सिंपल शब्दों में समझाने की कोशिश की है, अगर फिर भी कोई Confusion रह गई है, तो आप कमेंट बॉक्स में क्वेश्चन कर सकते है। मुझे आंसर देने में अच्छा लगेगा।
निष्कर्ष:
मैंने IPC Section 68 in Hindi को सिंपल तरीके से समझाने की कोशिश की है। मेरी ये ही कोशिश है, की जो पुलिस की तैयारी या लॉ के स्टूडेंट है, उनको IPC की जानकारी होनी बहुत जरुरी है। ओर आम आदमी को भी कानून की जानकारी होना बहुत जरुरी है।
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आशुतोष चौहान उत्तरप्रदेश के छोटे से गांव से है, ये पोस्ट ग्रेजुएट है, ये इस साईट के एडमिन है। इनको वेबसाइट ऑप्टिमाइज़ और कभी कभी हिंदी में आर्टिकल लिखना पसंद है।