आईपीसी धारा 76 क्या है? । IPC Section 76 in Hindi । उदाहरण के साथ

आज मैं आपके लिए IPC Section 76 in Hindi की जानकारी लेकर आया हूँ, पिछली पोस्ट में हमने  आपको आईपीसी (IPC) की काफी सारी धाराओं के बारे में बताया है। अगर आप उनको पढ़ना चाहते हो, तो आप पिछले पोस्ट पढ़ सकते है। अगर आपने वो पोस्ट पढ़ ली है तो, आशा करता हूँ की आपको वो सभी धाराएं समझ में आई होंगी ।

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 76 क्या होती है?

IPC (भारतीय दंड संहिता की धारा ) की धारा 76 के अनुसार:-

विधि द्वारा आबद्ध या तथ्य की भूल के कारण अपने आप के विधि द्वारा आबद्ध होने का विश्वास करने वाले व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य :- “कोई बात अपराध नहीं है, जो किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा की जाए जो उसे करने के लिए विधि द्वारा आबद्ध हो या जो तथ्य की भूल के कारण, न कि विधि की भूल के कारण, सद्भावपूर्वक विश्वास करता हो कि वह उसे करने के लिए विधि द्वारा आबद्ध है।”

दृष्टांत –

(क) विधि के समादेशों के अनुवर्तन में अपने वरिष्ठ ऑफिसर के आदेश से एक सैनिक क भीड़ पर गोली चलाता है। क ने कोई अपराध नहीं किया।

(ख) न्यायालय का ऑफिसर, क, म को गिरफ्तार करने के लिए उस न्यायालय द्वारा आदिष्ट किए जाने पर और सम्यक् जांच के पश्चात् यह विश्वास करके कि य, म है, य को गिरफ्तार कर लेता है। क ने कोई अपराध नहीं किया।

As per section 76 of IPC (Indian Penal Code) :-

Act done by a person bound, or by mistake of fact believing himself bound, by law :- “Nothing is an offence which is done by a person who is, or who by reason of a mistake of fact and not by reason of a mistake of law in good faith believes himself to be, bound by law to do it.”

Illustrations –

(a) A, a soldier, fires on a mob by the order of his superior officer, in conformity with the commands of the law. A has committed no offence.

(b) A, an officer of a Court of Justice, being ordered by that Court to arrest Y, and, after due enquiry, believing Z to be Y, arrests Z. A has committed no offence.


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धारा 76 क्या है?

ऊपर जो  डेफिनेशन दी गयी है, वो कानूनी भाषा में दी गयी है, शायद इसको समझने में परेशानी आ रही होगी। इसलिए इसको मैं थोड़ा सिंपल भाषा का प्रयोग करके समझाने की कोशिश करता हूँ।

IPC Section 76 में कहा गया है, कि अगर कोई व्यक्ति किसी काम को करने के लिए लीगली रूप से बाउंड है, कि उसको वह काम करना ही करना है। अगर कानून ने उसको उस काम को करने के लिए यह अथॉरिटी दी है, तब उस काम को अपराध नहीं माना जाएगा। जैसे कोई पुलिस अफसर अगर उसको लगता है, कि कोई अपराधी है, उसने कोई अपराध किया है, या वह अपराध कर सकता है। तब पुलिस अफसर कानूनी प्रोसेस के हिसाब से उसको अरेस्ट कर सकता है। तब उसको अपराध नहीं माना जाएगा, कि पुलिस अफसर ने गलत तरीके से उसको बंदी बनाकर कर रखा। क्योंकि उसके पास अथॉरिटी है, और उसने लीगली तौर पर वह काम किया है। उस काम को करने के लिए अपराध नहीं माना जाएगा।

IPC Section 76 में आगे कहा गया है, कि किसी इंसान ने कोई काम good faith में किया है, मतलब पूरी सावधानी से किया है, लेकिन फिर भी किसी तथ्य की गलती की वजह से उसने गलत काम कर दिया। लेकिन उसने अपने हिसाब से सारा काम कानूनी तौर पर बिल्कुल सही किया है, और उसको लगता है, कि मैं जो काम कर रहा हूं, वह सही कर रहा हूं। तब उसको भी अपराध नहीं माना जाएगा। इसमें ये दो पॉइंट थे। अब मैं इन दोनों पॉइंट को उदाहरण देकर समझाता हूँ।

पहला पॉइंट :- मान के चलिए, कहीं पर कोई आंदोलन हो रहा है, वंहा पर काफी भीड़ है, और उस भीड़ को रोकने के लिए, ताकि वह भीड़ किसी का नुकसान न कर सके। उसके लिए SP साहब या DSP साहब ने अपने सिपाहियों के साथ ड्यूटी लगा रखी है। लेकिन भीड़ उग्र हो जाती है। कुछ लोग वहां पर दंगा फ़साद करना स्टार्ट कर देते हैं, दो चार पत्थर पुलिस वालों को भी लग जाते हैं। उन्होंने गाड़ियां जालानी स्टार्ट कर दी। उन्होंने पब्लिक प्रॉपर्टी का नुकसान करना स्टार्ट कर दिया। वहां पर SP साहब या DSP साहब ने अपने पुलिस वालों को आदेश देते हैं, कि आप इन पर गोली चला दीजिए, या गैस के गोले छोड़ दीजिए, या लाठी चार्ज कर दीजिए। तब इस तरीके से अगर कोई सैनिक लाठी चार्ज करता है, या भीड़ पर गोली चला देता है। उसको अपराध नहीं माना जाएगा। क्योंकि वह लीगली रूप से बाउंड है, उस काम को करने के लिए। क्योंकि वो काम करने के लिए सुपीरियर अफसर ने वह आदेश दिया था। लेकिन वो काम कानून के दायरे में होना चाहिए। अगर कोई छोटा अफसर है, उसको उसका बड़ा अफसर कोई भी आदेश देता है, तो उसको लगना चाहिए, कि यह कानून संगत है, यह जो आदेश मुझे मिला है, ये आदेश कानूनी रूप से सही है।

दूसरा पॉइंट :- मान के चलिए, कोई A नाम का अफसर है, उसको कोर्ट ने आर्डर दिया, कि आप Y नाम के व्यक्ति को अरेस्ट कर लीजिए। तब उस अफसर ने पूरी सावधानी से काम किया। और अपनी इन्क्वायरी में Y नाम के व्यक्ति को पकड़ लिया। हालांकि जब उस अफसर ने Y से पूरी तरह से इन्क्वायरी की गई, पूछताछ की गई। तब उसको पता चला, कि जो Y नाम का व्यक्ति मैंने गिरफ्तार किया है। असल में यह Y है ही नहीं, यह तो Z है। उसने गलती से Z नाम के व्यक्ति को अरेस्ट कर लिया। हालांकि उस अफसर को पता नहीं था। उसने जानबूझकर के Z को गिरफ्तार नहीं किया। उसने अपना काम पूरी सावधानी से किया था। मान के चलिए हो सकता है, Z के घर वालों ने Z को Y बता दिया हो। तो किसी भी fact की गलती की वजह से उसने जो गलत इंसान को अरेस्ट कर लिया। उसको fact की गलती माना जाएगा। क्योंकि उसने जानबूझकर के Z को गिरफ्तार नहीं किया, उसने Y को गिरफ्तार करना था, और उसने Z को Y समझ लिया। यह तथ्यों की गलती की वजह से हुआ। उसको अपराध नहीं माना जाएगा। ये ही IPC Section 76 में बताया गया है।

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About Advocate Ashutosh Chauhan

मेरा नाम Advocate Ashutosh Chauhan हैं, मैं कोर्ट-जजमेंट (courtjudgement) वेबसाईट का Founder & Author हूँ। मुझे लॉ (Law) के क्षेत्र में 10 साल का अनुभव है। इस वेबसाईट को बनाने का मेरा मुख्य उद्देश्य आम लोगो तक कानून की जानकारी आसान भाषा में पहुँचाना है। अधिक पढ़े...