IPC 174A in Hindi- लोक सेवक का आदेश न मानकर गैर-हाजिर रहने के लिए दंड

दोस्तों, आज के इस आर्टिकल में हम चर्चा करने वाले हैं, IPC 174A In Hindi यानी भारतीय दंड संहिता की धारा 174A क्या है? इसमें भगोड़ा व्यक्ति के बारे में बताया गया है। तो चलिए इसको बिस्तार से बताते है, और साथ में ये भी बताते है, की अगर किसी व्यक्ति पर इस धारा में FIR हो जाती है, तो उस FIR को कैसे खत्म करे?

IPC (भारतीय दंड संहिता की धारा ) की धारा 174A के अनुसार:-

1974 के अधिनियम 2 की धारा 82 के अधीन किसी उद्घोषणा के उत्तर में गैर-हाजिरी :- “जो कोई दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 82 की उपधारा (1) के अधीन प्रकाशित किसी उद्घोषणा की अपेक्षानुसार विनिर्दिष्ट स्थान और विनिर्दिष्ट समय पर हाजिर होने में असफल रहता है, तो वह कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक का हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से दण्डित किया जायेगा और जहां उस धारा की उपधारा (4) के अधीन कोई ऐसी पापणा की गयी है जिसमें उसे उद्घोषित अपराधी के रूप में घोषित किया गया है, वहां वह कारावास से, जिसकी अवधि सात वष तक की हो सकेगी दण्डित किया जायेगा और जुर्माने का भी दायी होगा।”


As per section 174A of IPC (Indian Penal Code) :-

Non-appearance in response to a proclamation under section 82 of Act 2 of 1974 :- “Whoever fails to appear at the specified place and the specified time as required by a proclamation published under sub‑section(1) of section 82 of the Code of Criminal Procedure, 1973 shall be punished with imprisonment for a term which may extend to three years or with fine or with both, and where a declaration has been made under sub‑section (4) of that section pronouncing him as a proclaimed offender, he shall be punished with imprisonment for a term which may extend to seven years and shall also be liable to fine.”

ऊपर जो डेफिनेशन दी गयी है, वो कानूनी भाषा में दी गयी है, शायद इसको समझने में परेशानी आ रही होगी। इसलिए इसको मैं थोड़ा सिंपल भाषा का प्रयोग करके समझाने की कोशिश करता हूँ।

IPC 174A in Hindi – ये धारा कब लगती है?

जब कोई व्यक्ति किसी केस में भगोड़ा हो जाता है। मतलब जब सरकार किसी को किसी भी केस में जैसे कोई क्रिमिनल केस है, कोई चेक बाउंस का केस है, या और कोई क्रिमिनल केस है। अगर उसमें वो व्यक्ति जिसके खिलाफ FIR हुई है, जिसके खिलाफ कोर्ट के अंदर चालान पेश किया गया है, चार्ज शीट पेश की गई है, अगर वह व्यक्ति कोर्ट में पेश नहीं हुआ। तो उसको भगोड़ा करार दे दिया जाता है। जो केस उस पर आलरेडी चल रहा था, वो तो चल ही रहा है, लेकिन जब व्यक्ति भगौड़ा हो जाता है। तब उस पर एक FIR भगौड़ा होने पर 174A IPC के तहत हो जाती है। उसका पुलिस अलग से चालान पेश करती है। मतलब जिस व्यक्ति पर पहले एक केस था उसमें वो भगौड़ा हो गया अब उस व्यक्ति पर एक केस IPC 174A का ओर पड़ गया। क्योंकि वो पहले वाले केस में भगौड़ा हो गया है।

IPC Section 174A में जुर्माना/सजा का प्रावधान-

भारतीय दंड संहिता की धारा 174A में सजा दो प्रकार की दी गयी है।

अपराध सजा संज्ञेय जमानत विचारणीय
इस संहिता की धारा 82 की उपधारा (1) के अधीन प्रकाशित किसी उद्घोषणा की अपेक्षानुसार विनिर्दिष्ट स्थान और विनिर्दिष्ट समय पर हाजिर न होना। तीन साल तक सजा या जुर्माना, या फिर दोनों यह एक संज्ञेय अपराध है। यह एक गैर-जमानतीय अपराध है। प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट
अपराध सजा संज्ञेय जमानत विचारणीय
किसी ऐसे मामले में जहां इस संहिता की धारा 82 की उपधारा (4) के अधीन ऐसी घोषणा की गई हो, जिसमे किसी व्यक्ति को उद्घोषित अपराधी के रूप में घोषित किया गया है। 7 वर्ष + जुर्माना यह एक संज्ञेय अपराध है। यह एक गैर-जमानतीय अपराध है। प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट

जमानत का प्रावधान क्या है?

IPC 174A में जमानत मिलना कठिन है। क्योंकि ऐसे अपराध को संज्ञेय अपराध की श्रेणी में रखा गया है। और साथ में ये एक गैर-जमानतीय धारा भी है। इसलिए इसमें जामनत लेने के लिए आपको एक वकील की आवश्यकता होगी और जमानत भी कोर्ट से ही मिलेगी।

174A IPC की FIR को कैसे खत्म करे?

अगर किसी व्यक्ति पर 174A IPC के तहत केस हो गया है, तो उसके लिए सिर्फ और सिर्फ एक ही ऑप्शन है, कि अगर जो मैन केस है, मान के चलिए आपका चेक बाउंस का केस है, और उसमें आप भगोड़े हो गए, तो 174A IPC का एक ओर केस आप पर पड़ गया तो आप हाई कोर्ट में जा सकते हैं। हाई कोर्ट में जाकर रद्द करने (quashing) की पेटिशन दायर कर सकते हैं। अगर आपका चेक बाउंस का केस पहले क्लियर हो गया है, और उसमें कोम्प्रोमाईज़ हो गया है, आपने उस चेक के पैसे दूसरी पार्टी को दे दिए है, और आपका राज़ीनामा हो गया है। तो आप हाई कोर्ट में जाकर रद्द करने (quashing) की पेटिशन दायर कर सकते हैं। मतलब कि आप वहां पर यह जो एप्लीकेशन लगाएंगे उसमें बता सकते हैं, कि जो मैन केस था जिसमें मुझे भगौड़ा घोषित किया गया था वह खत्म हो चुका है, कोम्प्रोमाईज़ हो चुका है। हमने दूसरी पार्टी को पैसे अदा कर दिए हैं। अब जो इस धारा में मुझ पर FIR की गई है, उसको भी खत्म किया जाए। क्योंकि कोम्प्रोमाईज़ हो चुका है। हाई कोर्ट ऐसे मैटर को ज़्यादातर quash कर देती है। लेकिन आपका कोम्प्रोमाईज़ होना चाहिए। जिस केस में आपको भगौड़ा घोषित किया गया है। आप किसी अच्छे से वकील के द्वारा हाई कोर्ट में जाकर 482 CRPC के तहत रद्द करने (quashing) की पेटिशन दायर कर सकते हैं।

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About Advocate Ashutosh Chauhan

मेरा नाम Advocate Ashutosh Chauhan हैं, मैं कोर्ट-जजमेंट (courtjudgement) वेबसाईट का Founder & Author हूँ। मुझे लॉ (Law) के क्षेत्र में 10 साल का अनुभव है। इस वेबसाईट को बनाने का मेरा मुख्य उद्देश्य आम लोगो तक कानून की जानकारी आसान भाषा में पहुँचाना है। अधिक पढ़े...